Wednesday 26 December 2012

कांग्रेस में नेतृत्व की तलाश समाप्त

हिमाचल प्रदेश/सोलन/ प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में शुरू से अहम केंद्र रहे सोलन जिला में पार्टी के लिए अब नेतृत्व की तलाश समाप्त होती दिख रही है। इन विधानसभा चुनाव के परिणाम ने कांग्रेस को मैदानी स्तर पर गहनता से विचार करने पर मजबूर किया है, वहीं जिला में अरसे बाद कांग्रेसियों की ऐसी जमात भी उभरी है जो पार्टी को लंबे समय तक चला सकने में सक्षम है।


भले ही यह चुनाव कांग्रेस के लिए अधिक सुखद न रहे हों और पांच में से सिर्फ दो सीटों पर ही पार्टी उम्मीदवार जीत सके, लेकिन इससे कांग्रेस को संगठनात्मक संजीवनी जरूर मिली है। इन चुनाव से पालिश होकर निकले कांग्रेस नेता संगठन को सोलन जिला में नई दिशा दे सकते हैं, जबकि पार्टी के ओहदों पर बैठी अग्रणी पंक्ति पहले ही सक्रिय है और इनके सही तालमेल से यहां कांग्रेस का भविष्य संवर सकता है।

जिला मुख्यालय की सीट सोलन पर धनीराम शांडिल जैसे कद्दावर नेता की जीत से भाजपा मोहभंग हुआ, वहीं दूसरे निर्वाचन क्षेत्रों में भी युवा नेताओं के रूप में कांग्रेस की सेकेंड लीडरशीप लाइन का सूत्रपात हुआ है। हालांकि इसके संकेत उसी समय मिल गए थे जब विस चुनाव के लिए कांग्रेस हाईकमान ने युवा व नए चेहरों को तरजीह दी थी, लेकिन चुनावी जमीन पर यह प्रयास सफल न हो सका। कांग्रेस को शांडिल के नए व बड़े नाम पर सोलन के अलावा जिला में कुछ भी हासिल नहीं हुआ, जबकि दून से रामकुमार की जीत मायने नहीं रख पा रही है। ऐसे में जब कांग्रेस सोलन जिला से उखड़ रही थी तो पूर्व सांसद व सीडब्ल्यूसी मेंबर ने प्रदेश की सक्रिय राजनीति में आकर अपना पहला विधानसभा चुनाव जीतकर पार्टी को संबल प्रदान किया है।

चूंकि शांडिल पर प्रदेश कांग्रेस के किसी गुट का ठप्पा नहीं व उनके तार भी दिल्ली से जुड़े हैं और अब तो वह कैबिनेट मंत्री भी बन चुके हैं, ऐसे में कई गुटों में बंटी सोलन कांग्रेस को वही एक साथ लेकर चल सकते हैं, जबकि उनके सहयोग के लिए अन्य निर्वाचन क्षेत्रों से हारे युवा उम्मीदवार भी हैं। यही नहीं कांग्रेस के पास इन्हें सीधा रखने के लिए बागियों की फौज भी है, जिन्होंने चुनाव में पार्टी के युवा चेहरों को चमकने नहीं दिया। जिला के अर्की निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस के पास इन चुनावों में हारे युवा उम्मीदवार एवं ब्लॉक अध्यक्ष संजय अवस्थी, जबकि कसौली में युवा प्रदेश महासचिव विनोद सुल्तानपुरी भी चुनावी राजनीति में हार से पहला सबक सीख चुके हैं। इसी तरह नालागढ़ निर्वाचन क्षेत्र में पिछले विस चुनाव हारकर, उप चुनाव जीतने और फिर से आम चुनाव हारने के बाद युवा उम्मीदवार लखविंद्र राणा भी अधिक परिपक्व हो गए हैं।

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Ditulis Oleh : shailendra gupta Hari: 06:33 Kategori: