अश्विनी श्रीवास्तव/ भारत
सरकार को जब विश्व व्यपार संगठन डल्यूटीओ का सदस्यता मिली या जब अनुबंधित
हुआ, तब से दुनिया के व्यापार विनिमय की एक आचार संहिता को भी वह अपने देश
में लागू करने पर विवश हुआ। इसके लाभ अधिक और नुकसान कम है।
इसमें
कोई दो राय नहीं कि दुनिया में अनुपात हीन लाभ कमाने की होड़ और
मांग-पूर्ति के सिद्धान्त के असंतुलन सहित अनेक कारणों से मंडी का दौर जब
से शुरू हुआ है, सभी निवेशकों की आस भारत और चीन के व्यापार में प्रवेश को
आतुर थीं। अब जब चीन ने उन्हें अपने देश में आमंत्रित कर लिया है तब हमारे
पास भी यह अवसर और विवशता दोनों की समय सीमा निश्चित थी।
रिटेल
क्षेत्र में एफडीआई को मंजूरी के विरोध के कारणों से अधिक समर्थन के कारण
सामने देखे जा सकते है। इसमें सबसे बड़ा कारण है ग्रामीण क्षेत्र के अति
अनिवार्य संसाधनों के कमी की पूर्ति और किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य
मिलना। रिटेल क्षेत्र में यदि हम देखें तो गरीब किसान वर्षाेँ से उत्पीडऩ
का शिकार हैं। अधिकांश क्षेत्रों में आज भी किसान वर्षा पर निर्भर है,जल
स्त्रोतों का सही प्रबंधन ना होने से तंग है, इसके बाद भी उसकी उपज के
उत्पीडऩ की गाथा इतनी दर्द भरी है कि जिसे सुना-देखा जाये तो आंख नम हो
जायेंगी।
कदाचित,
यह भारत मेें ही संभव होगा कि वनोपज के बेशकीमती ड्रायफूटस मे चिरौंजी जैसे
मेवों को दूरस्थ कस्बाई बाजार में नमक से एक्सचेंज किया जाता रहा है,
जिससे बीनने वाले को पूरी जोखिम तो मिलती है किन्तु ना पौष्टिकता मिलती है
और ना ही वास्तविक मूल्य, ऐसे निर्भय और निर्दयी मुनाफाखोरों के चंगुल से
यदि हकदार दूर होता है तो निश्चित ही देश के अंतिम व्यक्ति तक न्याय पूर्ण
बाजार मूल्य पहुंचने में सारे अवरोध दूर हो पायेंगे।
भारत
सरकार/ यूपीए सरकार/ कांग्रेस सरकार की इस पहल का सर्वत्र स्वागत होना
चाहिये, क्योकि देश का आधा खाद्यान्न आज भी भंडारण के तकनीकी विकास के कारण
खराब हो जाता है, आधे खाद्यान्न को बाजार में हावी दलाली व्यवस्था के शोषक
किसान को छोटे-मोटे कर्ज देकर उसे शोषण के पैतृक अधिकार में दबा देते हंै।
इस बीमारी का इलाज एफडीआई है, इससे संपन्न बाजार घराने अपने अपने हिसाब से
एक और जहां निवेश के 50 प्रतिशत से भंडारण क्षमता, कोल्ड स्टोरेज जैसे
सरकार के वचन बद्ध की शर्तो में ग्रामीण क्षेत्रों में अनिवार्य संसाधन
निर्मित करेंगेे वहीं किसान की फसल की गुणवत्ता सुधारने मेें भी उसे सहयोग
कर उत्पादन बढायेेंगे जो रिटेल कारोबारियों के लाभ के लिये आवश्यक है वहीं
किसान के सफल समृद्धि की प्रतिस्पर्धा में सारे कारोबारी सामने आगे आयेंगे।
दुनिया
के साथ देश में सोने की कीमत आसमान पर जाने का जितना असर क्रेता पर विपरीत
पड़ रहा है उससे अधिक जिसके पास पैतृक संग्रहित सोना है उसको अनुकूलता भी
मिल रही है ठीक उसी प्रकार किसान की संपत्ति के पास जितने अधिक संसाधन और
पहुंच मार्ग होंगे संपत्ति/भूमि का मूल्य किसान को पर्याप्त समृद्धि देगा।
किसान
और उपभोक्ता के बीच में जितने कम ब्रोकर होंगे उतना अधिक लाभ दोनों को
होगा, किसान सशक्तीकरण के लिए रिटेल क्षेत्र में सम्पन्न वर्ग का आना जरूरी
है क्योंकि उनकी प्रतिस्पर्धा किसान को मूल्य अधिक देने के साथ उत्पादकता
बढाने पर भी लाभदायी होगी वहीं परस्पर प्रतिस्पर्धा से उपभोक्ता को सही और
कम कीमत चुकानी होगी।
निश्चित
ही अनुपात हीन लाभ कमाने वाले विचौलियों का वर्ग उससे उपेक्षित होगा
किन्तु जिस प्रकार साठ साल में दुकानों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि से
अनेकानेक रोजगार के अवसर कस्बेे से महानगरों तक रोज नये सृजित हो रहे हैं,
उसी क्रम में देश के बड़े घरानों के रिटेल क्षेत्र की व्यवस्था और संचालन
में करोड़ां नये रोजगार के अवसर पैदा होना स्वाभाविक है। उनकी प्रतिस्पर्धा
से बाजार गुणवत्तापूर्ण और कम लाभ अर्जित करने वाला होगा जिसे लाभ ही लाभ
है, हानि कम से कम है। करोड़ों लोगों के जीवन में समृद्धि और जीने के लायक
बातावरण पहुंचेगा तो हजारों को नितप्रति हो रहे आधे लाभ से तो हाथ धोना ही
पड़ेगा जो देश हित मे शुभलाभ होगा।