अश्विनी श्रीवास्तव/ देश में गुजरात जितना महात्मा गांधी की जन्मस्थली के रूप में वंदनीय है, उतना ही गुजरातियों द्वारा निवेश और बाजार की जोखिम में अडिगता से सदाचारी कदम दर कदम आगे बढ़ाते रहना भी अभिनंदनीय है। गुजरातियों ने दुनिया के अनेक देशों के आर्थिक साम्राज्य में एकाधिकार बना रखा है, जो गुजरात के विकास का मूल आधार है।
कठोर परिश्रम और उतार—चढ़ाव में एक दूसरे का दामन साधने के पर्याय गुजरातियों की चमक फीकी नहीं होने देती। इंदिरा गांधी के महत्वाकांक्षी निर्णयों में से इंदिरासागर नर्मदा बांध है, इसके निर्माण में अनेक अवरोधों के बाद भी वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों को गुजराती समूह का भी उल्लेखनीय योगदान और सहयोग मिला। इसकी अनेकों नहरों का तो निर्माण ही गुजराती कारोबारी समूह द्वारा स्वेच्छा से किया गया था, आज एक बड़े भूजल संकटग्रस्त क्षेत्र के लिए अमृत जैसा लाभ दे रहा है।
देश में अधिकांश निवेश की योजनाओं की लांचिंग गुजरात में होती है, समूह प्रतिष्ठान देश में कहीं से भी नियंत्रित होता हो किंतु बिना गुजरातियों के निवेश के वे आज भी उत्तरोत्तर गति से कदमताल नहीं कर पाते।
गुजरात और गुजरातियों के इस स्वर्ण्मि योगदान और परिचय पर जब नरेंद्र मोदीजी अपने अहंकारी योगदान की मुहर लगाते नहीं थकते, तब स्वभावत: गुजराती परिवार अपने को अपमानित महसूस करते हैं, अपने योगदान के अवमूल्यन को जीते हैं क्योंकि वे तनिक भी अहंकार को अंगीकृत नहीं नहीं करते हैं।
कठोर परिश्रम—दूरदर्शी निर्णय और बाजार की जोखिम से नित प्रति लोहा लेकर सफलता के नये आयाम देने वालों के राज्य को नरेंद्र मोदीजी क्यों अपनी जीत और हार में दांव लगाते है, यह तो वे ही बता सकते हैं किंतु आरएसएस और भाजपा के अंदर की बात से यह भी छनकर सामने आने लगा है कि इस 2012 के विधानसभा चुनाव में अपनी सरकार को हार से बचाने के लिए उन्होंने अपनी पार्टी के सारे वरिष्ठ नेताओं की शरण लेकर 1—2 प्रतिशत मतों के स्विंग के गणित में खुद को प्रधानम़ंत्री पेश करने का षडयंत्र किया है जिससे सीधे—सादे—विनम्र गुजरातियों को धोखे से भावनात्मक लगाव के जरिये छल सकें।
सुषमा स्वराज, अरूण जेटली, आडवाणीजी ने भी उन्हें आक्सीजन देकर दो तीर चलाए हैं। एक, यदि मोदी सरकार बनी तो उस पर उनका ऋण रहेगा और नहीं बनी तो मोदी चरित्र संजय जोशी—गडकरी की बद् दुआओं से सदा के लिए विस्मृत किए जा सकेंगे।
एक गुजराती सभी गुजरातियों से षडयंत्र पूर्वक समर्थन पा सकेगा या नहीं, यह तो 20 दिसंबर को ही पता चलेगा किंतु सारे लोगों के शरणागत होकर होकर सभी को अपने शरणागत आने का मीडिया प्रबंधन भी मोदी, भाजपा और आरएसएस ही कर सकते हैं।