Monday 31 December 2012

ICAR के 83वें स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री का संबोधन

खाद्य उत्पादन में राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता में आईसीएआर वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद परिवार को परिषद के 83 वें स्थापना दिवस पर मेरी शुभकामनाएं। आप सभी के साथ आज यहां उपस्थित होना मेरे लिए गर्व और बेहद खुशी का अवसर है।


आठ दशकों से भी अधिक समय से आईसीएआर ने बेहद विशिष्टता के साथ हमारे देश की सेवा की है। कृषि अनुसंधान के अनेक क्ष्ेात्रो में इसने अग्रणी कार्य किया है जिससे कई क्षेत्रों में सार्थक महत्वपूर्ण खोजो का मार्ग प्रशस्त हुआ है। खाद्यान्नों और खाद्य उत्पादन विविधता में राष्ट्रीय आतमनिर्भरता की उपलब्धि प्राप्त करने में आईसीएआर के वैज्ञानिकों का योगदान सच में बेहद अधिक है।

रिकार्ड कृषि उत्पादन


जैसा कि आप सब जानते है जो वर्ष बस अभी बीता है एसमें प्रमुख फसलो का उत्पादन रिकाॅर्ड स्तर पर रहा। 2360 लाख टन या 2410 लाखटन का अनुमानित उत्पादन जो कि माननीय कृषि मंत्रियों द्वारा दिया गया, उसे गेहूं मक्का और दालो के रिकाॅर्ड उत्पादन के कारण प्राप्त किया गया। तिलहन के उत्पादन ने भी नया रिकाॅर्ड स्थापित किया। इन शानदार उपलब्धियों के लिए मै अपने सभी किसान भाइयों और अपने कृषि वैज्ञानिकों को सलाम करता हूं। मै राज्य सरकारो खासतौर पर मुख्यमंत्रियों और राज्य कृषि मंत्रियों को कृषि उत्पादकता और उत्वादन बढाने के लिए उनके साहसिक प्रयासों के लिए बधाई देता हूं।

भविष्य की चुनौतियां


फिर भी आने वाले वर्षो में भारतीय कृषि के सामने काफी चुनौतियों है। हालांकि हमने अनाज उत्पादन में आत्म निर्भरता हासिल कर ली है, दालो और खाद्य तेलों के लिए हम अब भी आयात पर निर्भर है। हम अभी भी अल्पपोषण की समस्या का सामना कर रहे है, विशेष रूप से हमारे बच्चों और महिलाओं के बीच। खाद्य और पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करना और छिपी भूख सहित भूख की समस्या को समाप्त करना अभी भी एक उच्च राष्ट्रीय प्राथमिकता बनी हुई है।

विकास की समावेशी रणनीतियां जिनका हम अनुसरण कर रहे है उनके जरिए हमारा समाज के गरीब तबके की आय में वृद्धि होनी चाहिए। इससे न सिर्फ खाद्यान्न बल्कि फल, सब्जियों और पशु उत्पादो के लिए भी मांग में और वृद्धि होगी। वर्ष 2020-21 तक खाद्यान्न के लिए कुल मांग 2800 लाख टन को छूने का अनुमान है।

इस मांग को पूरा करने के लिये खाद्य उत्पादन में लगभग 2 प्रतिशत प्रति वर्ष विकास की दर की जरूरत होगी। इस कार्य की जटिलता इसी तथ्य से प्रतिबिंबित होती है कि 1997-98 से 2006-07 तक की 10 वर्षो की अवधि के दौरान, हमारे खाद्याान्न उत्पादन में केवल 1.00प्रतिशत की औसत वार्षिक दर से वृद्धि हुई है। हालांकि इसके बाद से खाद्यान्न उत्पादन ने अपेक्षित गति को दोबारा प्राप्त कर लिया है और ग्यारहवीं योजना के दौरान कृषि क्षेत्र पूर्ण तौर पर 3 प्रतिशत सालाना दर से बढ़ने के लिये तैयार है, लेकिन हम इससे संतुष्ट नही हो सकते। हमे यह ध्यान रखना चाहिए कि यह लक्षित 4 प्रतिशत से कम है और हाल के वर्षो में अस्वीकार्य स्तर के खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति परिणाम सामने आए है। मैं आशा करता हूं कि बारहवीं योजना में वो सभी उपाय होगं जो हमारी कृषि विकास दर में गति लाने के लिए जरूरी है।

दूसरी हरित क्रांति की आवश्यकता


हम सब गर्व के साथ हरित क्रांति की ओर पीछे मुडकर देखते है जिससे हमें खाद्य पदार्थ की कमी पर काबू पाने और भुखमरी को दूर करने या जहाज से सीधे मुंह तक की स्थिति से बाहर आने में मदद मिली। किंतु आज हम देखते है कि देश के वे क्षेत्र जो हरित क्रांति का गवाह बने थे वो आज पर्यावरण क्षरण की समस्याओं को झेल रहे है। देश के अन्य बहुत से क्षेत्रों खासतौर पर पूर्वी भारत में पैदावार जितनी अपेक्षित है उससंे अभी भी काफी कम हो रही है। हमे इस बात की चिंता होना चाहिए कि वर्षो के कालक्रम में भारतीय कृषि की उत्पादकता स्थिर हो गई है। स्पष्ट तौर पर हमें दूसरी हरित क्रांति की जरूरत है जो अधिक विशाल, अधिक समावेशी और अधिक सतत हो। हमें अपने प्राकृतिक संसाधनो को और अधिक नष्ट किए बगैर अधिक उत्पादन करने की जरूरत है और इस हरित क्रांति को दिशा देने के लिये हम अपने कृषि वैज्ञानिको की ओर देखते है। मौजूदा समय में भारत अपने कृषि सकल घरेलू उत्पाद का 0.6 प्रतिशत कृषि अनुसंधान और विकास पर व्यय करता है। 2020 तक इसे दो से तीन गुणा बढाने की जरूरत है क्योंकि हमारे कृषि विकास का एक बडा हिस्सा नवीन तकनीको के अनुप्रयोगों और उत्पादन प्रक्रियाओं में नवीन ज्ञान के माध्यम से आएगा। लेकिन अनुसंधान पर अधिक व्यय करना तब तक काफी नही है जब तक इससे कृषि के सभी क्षेत्रो में मावन संसाधनो की गुणवता में सुधार न आए। आज उच्च कृषि शिक्षा प्रदान करने वाले 50 राज्य कृषि विश्वविद्यालय और संस्थान तथा एक केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय देश में है। इन सभी संस्थानो को विद्यार्थियों को सर्वोतम शैक्षिक ज्ञान के साथ प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए। मै बेहद खुश हूं कि आईसीएआर इन विकासात्मक जरूरतो के प्रति सचेत है। और कृषि शिक्षा की गुणवता में सुधार लाने के लिए हाल ही में पाठ्यक्रम में संशोधन किया है। लेकिन और भी बहुत कुछ किया जाना होगा। मै आईसीएआर और हमारी राज्य सरकारो से आग्रह करूंगा कि वो ये सुनिश्चित करें कि हमारे कृषि विश्वविद्यालयों से ज्यादा संख्या में नये वैज्ञानिक उत्पन्न हो जिनमें आवश्यक कौशल हो। मैं यह भी सुझाव देता हूं कि हम अपनी कृषि विस्तार सेवा के ढाचे का पुनर्निरिक्षण करे ताकि हमारे वैज्ञानिक, हमारे प्रशासक और निजी उद्यमी एक साथ मिलकर किसानो को संभावित उपज और असल में प्राप्त हो रही उपज की दूरी को समाप्त करने में मदद करे। मै लगातार यह सुनता रहा हूं कि हमारी कृषि सेवाएं कई राज्यो मे ंठीक नही है। मै आगे सुझाव देता हूं कि कृषि विज्ञान केन्द्र जिसमें हमारे देश के सभी जिले समाविष्ट है को प्रोत्साहन में एक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी होगी, जिसे जवाहरलाल नेहरू भारत की कृषक अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक प्रकृति का विकास कहा करते थे। भारत की कृषि अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के इस नजरिए पर खासतौर पर ध्यान देने के लिए मैं आप सभी से आग्रह करता हूं।

दूसरी हिरत क्रांति में शुष्क जमीनी खेती को प्राथमिकता


वर्षा आधारित  कृषि का हमारी अर्थव्यवस्था में एक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाना जारी है, बुआई के लगभग 60 प्रतिशत क्षेत्र और कुल कृषि उत्पादन के 45 प्रतिशत हिस्से में इसकी भूमिका है। वर्षा आधरित क्षेत्र उपजाए गई 80 प्रतिशत से अधिक दलहन और तिलहन में योगदान देते है, इसके अतिरिक्त बागवानी और पशुपालन दत्पादन में भी इनका योगदान है। इसलिए दूसरी हरित क्रांति जिसके बारे में मैं बात करता आया हूं को आवश्यक रूप से स्पष्टतया शुष्क जमीनी खेती को ग्रहण करना चाहिए। हालाकि हमारे कृषि आधारित क्षेत्रो के लिए अनेक नवीन तकनीकों को अपनाया गया है लेकिन फिर भी उपज का अंतर अभी भी काफी अधिक है और सर्वाधिक उपयुक्त कृषि प्रणाली की पहचान के लिए बहुत कुछ नही किया गया है। यह सुनिश्चित करने के लिये वे प्रभावी तौर पर हमारे जल संभरण विकास परियोजनाओं के साथ समेकित हो, इसके लिए हमारे वैज्ञानिको को गहनता के साथ देश की जरूरतो को पूरा करने की दिशा में काम करना होगा और बेहतर मृदा तथा जल प्रबंधन कार्य प्रणाली, बुआई की प्रणाली में सुधार और बेहतर फसल प्रबंधन के लिए नए तरीको, नवीन तकनीकों और नए ज्ञान को विकसित करना होगा।

जल प्रबंधन


जिस क्षेत्र पर सर्वाधिक ध्यान देने की जरूरत है वह है जल प्रबंधन जो कि इक्कीसवीं सदी में सर्वाधिक दुर्लभ कारक होने जा रहा है। हमारी सिचाई क्षमता लगभग 30 प्रतिशत आकलित की गई है जिसमें कम से कम 50 प्रतिशत तक वृद्धि करनी होगी। यह कृषि उत्पादकता को बढानंे में काफी अधिक योगदान कर सकता है। संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकियों को उभारने की जरूरत है जो आतंरिक प्रयोग क्षमता में सुधार लाए और हमारे प्राकृतिक संसाधनो को संरक्षित करे और बचाए। कृषि उत्पादन बढाने के लिए हाइड्रोकार्बन आदानों पर अत्यधिक निर्भरता के खतरो की हमें पहचान रिनी होगी और हमें अधिक प्रणालीबद्ध तरीको से इसके जैविक विकल्पो की खोज करनी चाहिए उदाहरण के लिए शैवाल

कृषि क्षेत्र में नई पहल


जलवायु परिवर्तन हमारी कृषि के समक्ष एक प्रमुख चुनौती के रूप में उभरा है निश्चित तौर पर समस्त रूप से हमारी अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए। वर्तमान समस्या जिसका सामना हमारे किसान कर रहे है वो है वर्षा की अतः मौसमी परिवर्तनशीलता चरम घटनाएं और बेमौसमी वर्षा। इन असमानताओं की वजह से हमारी फसलो को हर वर्ष काफी नुकसान झेलना पडता है। इसलिए इस बात की बेहद अधिक जरूरत है कि हम जलवायु के अनुकूल फसलो की किस्मो, बुआई के तरीको और प्रबंधन की कार्यप्रणाली के विकास के लिए अपने प्रयासो ं में तेजी लाए। मै बेहद खुश हूं की आईसीएआर जलवायु अनुकूल कृषि पर राष्ट्रीय पहल की एक प्रमुख योजना को कार्यान्वित कर रहा है और अजैविक तनवा प्रबंधन पर इसने राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना की है। सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन जो कि जलवायु परिवर्तन पर हमारी राष्ट्रीय कार्य योजना के आठ मिशनों में से एक है भी खाद्य सुरक्षा निश्चित करने आजीविका के अवसरो को बढावा लाने और राष्ट्रीय स्तप पर आर्थिक स्थिरता लाने के लिये उपयुक्त अनुकूलन और शमन रणनीतियों की योजना बनाने की ओर लक्षित है। हमारे कृषि प्रदर्शन में गति लाने के लिए मै दो क्षेत्रो को छूना चाहूंगा जिन पर हमे केंद्रित होने की जरूरत है। पहला है फसलो ,पशुओं और कृषि उत्पादो को नई उभरती हुई बीमारियों और रोगाणुओं से बचाना। दूसरा है एत्पादकता में सुधार लाने के लाने, तनाव से बेहतर तरीको से निपटने और हमारे किसानो की आय में वृद्धि के लिये जैव प्रैद्योगिकी का उचित इस्तमाल। मै आशा करता हूं कि हमारे कृषि अनुसंधान  और विकास संस्थान आने वाले वर्षो मे ंइन क्षेत्रों की ओर ध्यान देगे।

जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख समस्या


पिछले सात वर्षो में हमारी सरकार ने कृषि क्षेत्र में कई नई पहलो की शुरूआत की है। इनमें से बहुत सारी पहलो के लिए मै अपने दोस्त और सहकर्मी श्री शरद पवार को बधाई देता हूं इनमें से बहुत सारी पहलो ने उत्साहजनक परिणामो को प्रदर्शित किया है। पर इन उपलब्ध्यिों को हमें बारहवीं पंचवर्षीय योजना में आगे बढाना होगा। बारहवी योजना में उपलब्धियों के क्षेत्रों में प्रगति को आगे भी सुनिश्चित करना होगा और जहां हमारी उपलब्धियां हमारी आशओं से या हमारी अर्थव्यवस्था के लिए लक्षित क्षमता से कम रह गई है वहां कमियों को दूर करना होगा। मैं अपने सभी वैज्ञानिको, प्रौद्योगिकीविदो और विस्तार विशेषज्ञों से आग्रह करता हूं कि वे योजना आयोग और कृषि मंत्रालय को इन नवीन पहलों के विषय में अपने अनुभव और व्यक्गित आकलन को साझा करे ताकि पिछले कुछ वर्षो में पेश आने वाली कई नई चुनौतियों से बारहवी पंचवर्षीय योजना में निपटा जा सके। मै आप सब से आग्रह करूगां कि आत्मनिरीक्षण करे कि इन पहलो के लिए उच्च लक्ष्य हासिल करने में आपके स्वयं के अनुसंधान किस तरह योगदान कर सकते है। बागवानी, मत्स्य पालन और पशु विज्ञान सहित कृषि शिक्षा क्षेत्र में अनुसंधान और शिक्षा के समन्वय मार्गदर्शन और प्रबंधन के लिए देश के शीर्ष संगठन के रूप मे ंआईसीएआर अपने कंधो पर एक भारी जिम्मेदारी वहन करता है। दुर्भाग्यवश कई लोगो के बीच यह धारणा बन गई है कि राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली समय के साथ कुछ सीमित हो गई है और खेतिहरो की विशिष्ट मांगो के प्रति यह कम प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। आपको कभी भी इस बात की अनदेखी नही करनी होगी कि भारतीय कृषक आपका प्रमुख ग्राहक है। जब तक आप किसानो और उनकी समस्याओं के संपर्क में नही जाएंगे तब तक आप नवीन ज्ञान को उत्पादकता और किसानों के लिए बेहतर आय में तब्दील नही कर पाएंगे। आपके सम्मुख चुनौतियों में शायद यह सबसे मुश्किल है जिससे आपको आने वाले समय में पार पाना होगा और जो आपकी प्रतिबद्धता और क्षमता कर परीक्षण करेगी। मुझे विश्वास है कि जिससे आपको आने वाले समय में पार पाना होगा और जो आपकी प्रतिबद्धता और क्षमता का परीक्षण करेगी। मुझे विश्वास है कि कृषि वैज्ञानिको और हमारे किसानों के बीच आपसी बातचीत को मजबूत करने और अनुसंधान और विकास जरूरतो के बीच अभिसरण सुनिश्चित करने के लिए आईसीएआर पहले ही मजबूत प्रणाली का इस्तेमाल कर रहा है। मुझे आशा है कि स्थापना दिवस के इस अवसर का इस्तेमाल आप अपने काम और उपलब्ध्यिों को प्रदर्शित करने के लिए करेगे।


कृषि वैज्ञानिकों और किसानो की बीच बेहतर संवाद की जरूरत



मुझे विश्वास है कि यह प्रदर्शन आपको दूरदर्शी और विस्तृत दृष्टि, देश के भीतर और देश के बाहर सर्वोतम अनुसंधान संगठनों की ओर देखने और आम अफसरशाह अनुक्रम और अत्यधिक सख्ती से मुक्त अनुसंधान आयोजित करने के लिए नए एवं अधिक प्रजातांत्रिक तंत्रो और प्रक्रियाओं को अपनाने का अवसर प्रदान करेगा।

गौरवान्वित होने के लिए आपके पास रिकॅर्ड है हालांकि भविष्य में चुनौतियां काफी अधिक है, लेकिन मुझे विश्वास है कि चाहे कोई भी बाधा क्यों न हो हमारी कृषि अनुसंधान प्रणाली राष्ट्र के हित में योगदान देने में सफलता जरूर हासिल करेगी। इन शब्दों के साथ मै आईसीएआर परिवार को उनके प्रयासों में सफलता हासिल करने की कामना करता हूं। भगवान आपका पथ प्रशस्त करे।



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Ditulis Oleh : shailendra gupta Hari: 02:46 Kategori: