भोपाल। प्रदेश
कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया ने कहा है कि
भाजपा सरकार द्वारा करोड़ों के खर्च के बाद भी प्रदेश में नये निवेश के
मामले में निराशा ही हाथ लग रही है। दूसरी तरफ निवेश के नाम पर मूल्यवान
सरकारी जमीन सरकार के हाथ से निकलकर फर्जी निवेशकों के कब्जे में जा रही
है।
आपने
कहा है कि जबसे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उद्योग मंत्री कैलाश
विजयवर्गीय की जुगल जोड़ी ने प्रदेश में निवेश आमंत्रित करने का महंगा
तमाशा शुरू किया है, तब से मूल्यवान जमीनों का ‘‘सरकारी भूदान’’ अवश्य
धड़ल्ले से चल रहा है और तथाकथित निवेशकों के ललाट देखकर सरकार द्वारा
जमीनों के आवंटन का तिलक लगाया जा रहा है।
पिछले
6-7 वर्षों में फर्जी निवेशकों ने निवेश का प्रपंच रचकर हजारों एकड़
सरकारी जमीनें हड़प ली हैं। सरकार इनसे ये जमीनें वापस करने की बात करती है
तो वे उसको धता बता देते हैं। कुछ ने तो ऐसी जमीनों पर उद्योग लगाने की
बजाय अन्य व्यावसायिक गतिविधियां शुरू कर दी हैं तथा ऐसी भी शिकायतें हैं
कि कुछ ने सरकारी जमीनों को खुर्द-ब-खुर्द कर डाला है।
श्री
भूरिया ने कहा है कि जमीन हड़पने का यह सिलसिला इतना व्यापक, सुनियोजित और
गंभीर है कि लगता है-भाजपा सरकार निवेश की नाटकबाजी केवल अपने चहेतों को
सरकारी जमीनों के आवंटन के माध्यम से मालामाल करने की नीयत से चला रही है।
आपने कहा है कि जबलपुर के सिहोरा में और अन्य जिलों में फर्जी निवेशकों के
साथ एमओयू की आड़ में अवैध खनन और परिवहन का कारोबार बेरोकटोक शुरू हो गया
है।
अधिकारी
इस अवैध कारोबार की तरफ से इस कारण आंखें मींच बैठे हैं कि फर्जी
उद्योगपतियों को उपकृत करने में मुख्य मंत्री एवं उद्योग मंत्री की खास
रूचि है।
पूर्व
केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि सरकार ने जिन निवेशकों के उद्योग अनुबंध
निरस्त कर दिये हैं, वे भी अधिकारियों को सरकारी जमीन का कब्जा नहीं लौटा
रहे हैं।
आपने
कहा है कि औद्योगिक केंद्र विकास निगम के तहत 1770 प्लाटों के लिए जो करीब
4000 एकड़ जमीन दी गई थी, उसमें से संबंधित लोगों ने अब तक मात्र 350 एकड़
जमीन ही लौटाई है। नियमानुसार बड़े उद्योगों को तीन साल में और मध्यम तथा
छोटे उद्योगों को दो साल में काम शुरू करना था, लेकिन 4-5 साल बीत जाने के
बावजूद आवंटित जमीनों पर उद्योग लगने के कोई भी चिन्ह तक दिखाई नहीं दे रहे
हैं।
श्री भूरिया ने आगे कहा है कि जिला औद्योगिक क्षेत्र स्तर पर दी गई 683 एकड़ जमीन में से अब तक केवल 70 एकड़ जमीन ही सरकार को वापस मिली है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि सरकार के चहेते फर्जी निवेशक बड़े पैमाने पर सरकारी जमीन को हड़पकर वहां अन्य व्यावसायिक गतिविधियां संचालित करना अथवा कालोनियां काटना चाहते हैं। संभवतः शिवराज और विजयवर्गीय की जुगलजोड़ी भी यही चाहती है।