Sunday 18 November 2012

राहुल गांधी: युवा देश, युवा नेतृत्व


अश्विनी श्रीवास्तव/ कांग्रेस, एकमात्र ऐसी राजनीतिक पार्टी है, जिसकी जड़ें देश के हर राज्य और हर हिस्से में हैं। लिहाजा, कांग्रेस की हर घटना या गतिविधि पर देशवासियों की ही नहीं, विदेशी राजनीतिज्ञों की भी दृष्टि रहती है। 'गांधी' सरनेम को निकालकर आप कांग्रेस पार्टी का विचार भी नहीं कर सकते। यह भी अनेक बार सिद्ध हो चुका है। सन् 2014 के लोकसभा चुनाव मुंह बाए खड़े हैं।

इस आम चुनाव में कांग्रेस ने चुनाव समन्वय समिति के प्रमुख पद की जिम्मेदारी पार्टी के महासचिव राहुल गांधी के कंधों पर सौंपी है। कांग्रेस का यह निर्णय, वाकई आश्चर्यजनक है। राहुल, फिलहाल 42 वर्ष के हैं। यानी, कांग्रेस पार्टी ने उन पर जवाबदारी सौंपकर एक तरह से पार्टी में युवा चेहरों को प्राथमिकता देने का तय कर लिया है। देश की मौजूदा आबादी के मद्देनजर उसकी जरूरत भी थी।  

आज देश में 50 प्रतिशत जनता 25 साल से कम आयु की है तो 35 वर्ष से कम आयु की तादाद 65 फीसदी है। सन् 2020 में देश के 32.5 करोड़ युवा विभिन्न उद्योगों—व्यवसायों के लायक होंगे, तो दूसरी ओर तब अमेरिका, चीन, जापान जैसे आधुनिक देशों की अर्थव्यवस्था को तमाम संकटों का सामना करना पड़ेगा। वह काल, हमारे युवाओं के लिए स्वर्ण—काल होगा। 

कालानुसार टेक्नॉलॉजी में तेजी से परिवर्तन होते हैं, हो रहे हैं। उसके साथ कदमताल कर आगे जाने वाले देशों को ही तरक्की और प्रगति के फल खाना सुविधाजनक होता है। उसके लिए देश का युवा नेतृत्व भी उतना ही सजग होने के साथ वैचारिक स्तर पर सुदृढ होना जरुरी है। आज देश में भी सूचना और आईटी के क्षेत्र में तेजी से तब्दीलियां हो रही है। देश की मौजूदा युवा पीढ़ी की भाषा व बदलते माध्यमों के अनुरुप ढल चुकी है। 

स्वाभाविक है कि उनकी भाषा को समझने वाले, उसके आधार पर उन्हें तरक्की की ओर ले जाने वाले नेतृत्व की देश को जरुरत थी ही। इसी संदर्भ में राहुल गांधी पर कांग्रेस चुनाव समन्वय समिति के प्रमुख पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कल हो सकता है, राहुल गांधी पार्टी में महत्व के किसी और पद को सुशोभित करें, परंतु इसमें कोई दो राय नहीं कि उनका अंतिम लक्ष्य या मिशन प्रधानमंत्री पद ही है। राहुल, 2004 में अमेठी लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने। उसके बाद उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों का दौरा कर विभिन्न वर्गों, खास तौर पर युवाओं और छात्रों की समस्याओं को समझने का प्रयास किया। विदर्भ हो या बुंदेलखंड, किसानों की व्यथा—कथा जानकर उन्हें समझने की कोशिश की।

जन—सामान्य की समस्याओं को लोकसभा में उठाकर उन्होंने देश के सर्वोच्च शक्ति—केंद्र का ध्यानाकर्षण भी किया। इसके अलावा विभ्न्नि विश्वविद्यालयों में जाकर छात्रों से, युवाओं के सम्मेलन कर उनके मानस को, उनकी समस्याओं को जानने—समझने की कोशिश कीराहुल गांधी ने युवाओं को आश्वस्त किया कि वे उनके साथ हैं। युवक कांग्रेस को, कांग्रेस की रीढ़ कहा जा सकता है। 

युवक कांग्रेस के जरिए ही शरद पवार और गुलाम नबी आजाद आदि नेता देश की राजनीति में स्थापित हुए। पिछले कुछ सालों से कांग्रेस की महत्व की यह शाखा उपेक्षित थी। युवक कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का काम राहुल गांधी ने ही किया। उन्होंने युवक कांग्रेस के पदाधिकारी भी संगठनात्मक चुनाव के माध्यम से ही चुने। राहुल गांधी के, इस प्रकार के साहसी प्रयोगों के कारण विरोधियों की बोलती बंद हो गई। सन् 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने युवाओं को प्राथमिकता दी,इसलिए हम आज सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मीनाक्षी नटराजन, मिलिंद देवरा जैसे युवा चेहरे देख रहे हैं।

इसका यह मतलब भी नहीं निकाला जाना चाहिए कि कांग्रेस का बुजुर्ग नेताओं से मोहभंग हो गया है। राहुल गांधी को चुनाव समन्वय समिति के प्रमुख पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है तो इस समिति में अहमद पटेल, जनार्दन द्विवेद्वी, दिग्विजयसिंह, जयराम रमेश सरीखे वरिष्ठ एवं अनुभवी नेता भी हैं। संदेश स्पष्ट है कि पार्टी के बुजुर्ग एवं वरिष्ठ नेता अब युवाओं के पीछे मजबूती के साथ खड़े होंगे, जिससे युवाओं को कल का समर्थ भारत बनाना सुविधाजनक होगा। राहुल गांधी, पार्टी में महासचिव की जिम्मेदारी निभा रहे हैं और अब चुनाव समन्वय समिति के प्रमुख पद की जिम्मेदारी स्वीकारने के बाद इस अब उनका विरोध करने वालों को अपनी भूमिका की पड़ताल करने का वक्त आ गया है।

राहुल के पिता राजीव गांधी ने जब प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाजली थी, तब उनकी उम्र थी केवल 40 साल, परंतु आज देश में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह आर्थिक सुधार की दिशा में जो कार्य कर रहे हैं,राजीव गांधी द्वारा लगाए गए इन्फॉरमेशन टेक्नॉलॉजी के पौधे को वृक्ष बनाने में डॉ. मनमोहनसिंह की महत्वपूर्ण भूमिका है।

दुनिया जब आर्थिक मंदी के गर्त में थी, तब उसका प्रभाव अपने देश में कैसे में कैसे कम से कम हो, इस पर जोर दिया। आर्थिक मंदी की बयार को रोकने में उन्हें कामयाबी भी मिली। फिर भी विरोधी उन पर टीका—टिप्पणी से बाज नहीं आए।

आज भाजपा में लालकृष्ण आडवाणी से लेकर मुरली मनोहर जोशी सरीखे नेता प्रधानमंत्री पद का सपना संजोए हुए हैं तो उनकी भिड़ंत नरेंद्र मोदी जैसे कट्टर नेता से हो रही है। इस परिप्रेक्ष्य में राहुल गांधी के संयम की तारीफ की जा सकती है। उनकी अगुवाई में पार्टी ने अब तक उत्तरप्रदेश एवं बिहार विधानसभा के चुनाव लड़े हैं, जहां पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। अब राहुल को चुनाव समन्वयक समिति का प्रमुख बनाए जाने पर इन बातों की याद दिलाई जा रही है, परंतु उसका वैसा अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए। 

एक तो यूपी और बिहार में कमजोर संगठन और दूसरे सत्ता—साकेत के लिए जाति, धर्म आदि घटकों की निर्णायक भूमिका होती है, इन बातों की ओर हम आंख नहीं मूंद सकते। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है, वहां विरोधी दलों से दो—दो हाथ करना भी जरूरी था। राहुल गांधी ने वही करके दिखाया। वाकई, राहुल गांधी ने अपने कंधों पर यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी ली है। उम्मीद की जाना चाहिए कि इस युवा नेता के पीछे संपूर्ण पार्टी व देश की तरुणाई खड़ी रहेगी और वे कांग्रेस के रथ को विजय पथ पर ले जाएंगे।

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Ditulis Oleh : shailendra gupta Hari: 07:43 Kategori: