Wednesday 12 December 2012

कांग्रेसी हो गया गुजरात का ये मुसलमान स्वयंसेवक

आरएसएस से कई सालों तक जुड़े रहने के बाद अब यासीन कांग्रेसी हो गए हैं। अहमदाबाद के मुस्लिम बहुल जमालपुरा इलाके में यासीन अजमेरवाला का नाम बता कर पूछने पर भी कोई उन्हें पहचान नहीं पाता लेकिन उनके बारे में और बताने पर लोग कहते हैं वो 'वीएचपी वाला'.

सालों से यासीन अजमेरवाला की पहचान उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव ही रहा है. साल 2002 के दंगों के बाद जब गुजरात का ज़्यादातर मुसलमान भाजपा का नाम भी नहीं सुनना चाहता थे तब अजमेरवाला तत्कालीन सरसंघ चालक केएस सुदर्शन के आदेश पर गुजरात में राष्ट्रवादी मुस्लिम आंदोलन के अलंबरदार बने.

वो गुजरात के गाँव-गाँव जाते रहे और मुसलमानों को समझाते रहे कि साल 2002 के मुसलमान विरोधी दंगे भावनात्मक उद्वेग के कारण हुए थे न कि नरेन्द्र मोदी की प्रशासनिक नाकामी के षड्यंत्र की वजह से.

अजमेरवाला राज्य भाजपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के सचिव भी रहे हैं. एक उत्साहित स्वयंसेवक की तरह जब पिछले साल मोदी ने सदभावना उपवास रखा तो अजमेरवाला कई मुसलमानों को आग्रह कर कार्यक्रम में ले गए.

क्यों टूटे रिश्ते


वो कहते हैं, "मुझे थोड़ा अजीब लगा था जब कहा गया कि मुसलमानों को टोपियाँ लगा कर आना है. मुझे लगा कि ऐसा क्यों, हम तो हमेशा हिंदू-मुस्लिम लोगों में समानता की बात ही करते आए हैं? उसके बाद जब मोदी ने वहां मेरे बुलाए इमाम के हाथों टोपी पहनने से इनकार कर दिया तो मुझे झटका लगा. यानी मुसलमान टोपी पहन कर आए क्योंकि वो मुसलमान है लेकिन मोदी वो टोपी एक बार भी नहीं पहन सकते."

"किसी हारने वाली सीट से भी प्रदेश में पांच मुसलमानों को टिकट दे देते, तो भी हम मुसलमानों को कह पाते कि भाजपा हमारे साथ कोई भेदभाव नहीं करती."

यासीन अजमेरवाला


लेकिन वो भाजपा और संघ में बने रहे. अजमेरवाला कहते हैं, "जब मोदी ने एक भी मुसलमान को इन चुनाव में टिकट नहीं दिया तो मैंने पार्टी को छोड़ना तय कर लिया. मैं अपने लिए टिकट नहीं मांग रहा था. किसी हारने वाली सीट से भी प्रदेश में पांच मुसलमानों को टिकट दे देते तो भी हम मुसलमानों को कह पाते कि भाजपा हमारे साथ कोई भेदभाव नहीं करती."

जब आप उनसे पूछिए कि भाजपा ने तो पहले भी मुसलमानों को टिकट नहीं दिए तो उनका कहना था "मोदी ने पहले सदभावना उपवास नहीं किए थे. हज पर जाने वाले मुसलमानों को बधाई के पोस्टर भी इसी साल लगवाए गए थे."

मन से स्वयंसेवक


अजमेरवाला भले ही कांग्रेस में चले गए हों लेकिन वो आज भी संघ के पांच शीर्ष पदाधिकारियों में से एक इन्द्रेश कुमार को अपना गुरु बताते हैं. इत्तेफाक से इन्द्रेश कुमार का नाम समझौता ट्रेन ब्लास्ट, मालेगाँव बम धमाके और मक्का मस्जिद बम धमाके से जोड़ा गया है.

अजमेरवाला का दावा है, "दो रोज़ पहले भी इन्द्रेश जी का मेरे पास फोन आया था, उन्होंने कहा कि यासीन राष्ट्र के कार्य में लगे रहो."

"मैं कांग्रेस के लोगों को समझाऊंगा कि इन्द्रेश जी भले आदमी हैं और वो मुसलमान विरोधी नहीं है"

यासीन अजमेरवाला


अजमेरवाला एक आदर्श स्वयंसेवक की तरह सुबह 4.30 बजे उठ जाते हैं और दोपहर में नियमित रूप से सो जाते हैं. अजमेरवाला की बातचीत और शब्दावली से साफ झलकता है कि वो अभी अपनी नई पार्टी में ढले नहीं हैं. उनसे बात करो तो उनकी जुबान संघ कार्यकर्ताओं की तरह संस्कृतनिष्ठ है और वो बात-बात में "प्रवास, दायित्व, कार्यक्रम जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं."

अपने आप को सालों तक संघ के स्वयंसेवक समझने वाले अजमेरवाला का कहना है, "मैं कांग्रेस के लोगों को समझाऊंगा कि इन्द्रेश जी भले आदमी हैं और वो मुसलमान विरोधी नहीं हैं."

बड़ी तस्वीर का एक हिस्सा ?


अजमेरवाला के अलग होने की घटना सरसरी निगाह से देखने पर मामूली लग सकती है लेकिन वो अकेले नहीं हैं. कुछ दिन पहले आरएसएस से जुड़े वरिष्ठ विचारक और पूर्व प्रवक्ता एमजी वैद्य ने नरेंद्र मोदी को स्वार्थी और षड्यंत्रकारी बताया था. आरएसएस ने वैद्य की निंदा नहीं की थी बस उसे उनका निजी बयान बता कर चुप हो गई थी.

इसी तरह से विश्व हिन्दू परिषद के कई स्थानीय नेता और कार्यकर्ता खुले आम अपने संगठन में रहते हुए भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.
ऐसे लोगों में शामिल हैं सूरत विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष घनश्याम इताडिया उर्फ़ काडू भीम नाथ और जूनागढ़ के अध्यक्ष ललित सुहागिया जो गुजरात परिवर्तन पार्टी के टिकट पर लड़ रहे हैं. इन लोगों को अभी तक विश्व हिन्दू परिषद ने नहीं निकाला है.

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Ditulis Oleh : shailendra gupta Hari: 02:07 Kategori: